Tuesday, October 20, 2015

नियोग तथा इस्लाम में नारी का वजूद

नियोग को अरबी में निकाह अल इस्तिब्दाद कहते हैं।

प्री इस्लामिक एरा (इस्लाम से पूर्व अरबी रीति रिवाज) में मुख्य रूप से ४ प्रकार के निकाह ज्यादातर अम्ल में लाये जाते थे, 

1. पति, अपनी पत्नी को किसी अन्य पुरुष के साथ संसर्ग करने हेतु भेज देता था, ताकि उत्तम गुणों से युक्त संतान पैदा हो, (यानी अपने से उच्च वर्ण में) फिर जब महिला को ज्ञात हो जाता था की गर्भ ठहर गया है तब वो अपने पति के पास आ जाती थी।

पति अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध नहीं बना सकता था जब तक वह पत्नी संतान उत्पन्न न कर दे।

यहाँ ध्यान देने वाली बात है की महिला जो संतान उत्पन्न कर रही है वो उसके पति की ही संतान मानी जाती थी।

2. एक तरीका निकाह का वही है जो आज अपनाया जाता है, जिसमे एक कॉन्ट्रैक्ट होता है, महिला से उसका मेहर लिखवाया जाता है, जिसके द्वारा पुरुष कभी भी अपनी पत्नी को ३ तलाक़ कहकर, मेहर देकर अपने घर से विदा कर सकता है।

3. एक बड़ा अजीब निकाह का कांसेप्ट उस काल में अरब में व्याप्त था, एक महिला के साथ दस पुरुष सम्भोग करते थे, जब महिला को गर्भ ठहर जाता और वो संतान पैदा हो जाती तब उन दसो मनुष्यो को बुलावा भेजा जाता, कोई भी पुरुष आने से इंकार नहीं कर सकता था, तो जब दस के दस आ जाते तब वो महिला किसी भी एक को उस बच्चे का पिता बताती और ये उस मनुष्य को मान्य होता था, वो इंकार नहीं कर सकता था, तब वो उस बच्चे को अपने साथ ले जाता।

4. अनेको मनुष्य, एक तरह का वैश्यालय जहाँ पहचान के लिए झण्डिया लगाईं जाती थी, वहां जाते, जिस महिला से चाहते सम्भोग करते, चाहे एक महिला से अनेको करते हो, यदि उक्त महिला को गर्भ ठहर जाता और वो संतान उत्पन्न कर देती थी, तब सभी मनुष्यो को बुलावा भेजा जाता, यहाँ भी कोई आने से इंकार नहीं कर सकता था, सब आते, और बच्चे की शक्लो सूरत, हाव भाव, जिस पुरुष से मेल खाते, उसे उस बच्चे का पिता घोषित कर दिया जाता, वो मनुष्य इंकार नहीं कर सकता था, तब वो उस बच्चे को अपने साथ ले जाता।

उक्त चारो प्रकार के निकाह इस्लाम के आने से पूर्व अरब में अपनाये जाते थे वहां की संस्कृति के हिस्सा था, इन चारो प्रकार के निकाह में जो सबसे इंट्रेस्टिंग पॉइंट है वो है की अरब में नियोग प्रथा का महत्त्व था, अरबी लोग नियोग को जानते थे, यानी वहां वैदिक सभ्यता के प्रमाण मिलते हैं, हालांकि अन्य ३ प्रकार के निकाह का होना दर्शाते हैं की अरबी लोग जाहिल और व्यभिचारी भी हो चुके थे, लेकिन वो नियोग को मान्यता देते थे ये बात अरब में नियोग प्रथा का वर्णन खुद मुहम्मद साहब की प्यारी बेगम आईशा ने सहीह बुखारी में वर्णित किया है।

Reference : Sahih al-Bukhari 5127
In-book reference : Book 67, Hadith 63
USC-MSA web (English) reference : Vol. 1, Book 62, Hadith 58
(deprecated numbering scheme)

हालांकि ये बात भी इस हदीस में मौजूद है की मुहम्मद साहब ने उक्त ४ निकाह में से ३ प्रकार के निकाह अमान्य, निरस्त और जाहिलियत करार दिए, लेकिन एक प्रकार का निकाह जो आज भी मुस्लिम अपनाते हैं, उसे सही बताया, ये प्रथा भी अरबी समाज में व्याप्त थी, जिसमे अनेको खामिया हैं, फिर इसे अपना कर अन्य तीन को निरस्त करना समझ नहीं आया, लेकिन यदि आप मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़े तो पाएंगे की उनकी अनेको बिविया थी और लौंडिया भी इसलिए शायद यही वजह थी यदि ये निकाह का कॉन्सेप्ट नहीं होता तो शायद वो इतनी बिविया नहीं रख पाते, या हो सकता है अल्लाह ने उनके लिए ये तरीका जायज़ बनाया हो, जब जाहिलियत काल के ये ३ निकाह गलत थे तो चौथा सही कैसे ? क्या जाहिलियत काल की भी कोई प्रथा सत्य हो सकती है ? यदि हाँ तो फिर मुहम्मद साहब ने नयी प्रथा क्या दी ? ये तो पहले से मौजूद थी। बस इतना ही की कुछ प्रथाओ को बंद करवा दिया, सिर्फ जाहिलियत के नाम पर, मगर जिस प्रथा से फायदा था उसे अपनाये रखा भले ही वो भी जाहिलियत का ही हिस्सा थी, क्या ये न्यायकारी प्रक्रिया थी ?

खैर जो भी हो इस पर मेरे कुछ सवाल खड़े होते हैं :

1. महिला को मैहर देना, यानी उसकी शारीरिक सेवा का मूल्य पहले ही निर्णीत कर लेना और जब चाहे तब ३ तलाक़ बोलकर रिश्ते को खत्म कर लेना, क्या ये ऐसा नहीं लगता जैसे महिला को सेक्स (सम्भोग) के लिए ख़रीदा गया और इस्तेमाल के बाद "यूज़ एंड थ्रो" बना दिया ? क्या ये प्रक्रिया आधुनिकता का प्रतीक है ?

2. महिला को यदि पुरुष से सम्बन्ध विच्छेद करना हो यानी तलाक़ लेना हो तो मेहर की रकम छोड़नी होगी साथ ही अन्य भी शर्ते माननी होंगी ताकि पुरुष तलाक दे, तब कहीं महिला इस सम्बन्ध से मुक्ति पाएगी, क्या ये महिला का शोषण नहीं ?

3. यदि किसी कारण तलाक़शुदा महिला और पुरुष जो पहले रिश्ते में थे, पुनः निकाह करना चाहे तो महिला को पहले किसी अन्य पुरुष से निकाह करके एक रात बिताकर (सम्भोग करवाकर) उसके बाद नए पति से तलाक़ पाकर तब जाकर अपने पूर्व पति के साथ पुनः सम्बन्ध बना सकती है। क्या ये वैश्यावृति नहीं, क्या यहाँ नैतिकता और चरित्रता दोनों को तिलांजलि नहीं दी गयी ?

4. पुरुष जब चाहे महिला को तलाक़ दे सकता है, मौखिक, लिखित, टेलीफोन पर, यानी कैसे भी, और वो महिला को मान्य करना ही होगा, क्योंकि ३ तलाक़ के पश्चात वो महिला, तलाक़ देने वाले पुरुष के लिए हलाल (वैध) नहीं है। क्या यहाँ महिला को केवल मेहर देकर, विदा करने की परंपरा शर्मसार नहीं है ? क्या ये निकाह प्री-प्लान तरीके से किसी महिला की इज्जत ख़राब करने के मनसूबे से काम में नहीं लाये जाते ?

5. यदि तलाक़ शुदा महिला, एक नया खाविंद (पति) बना ले, मगर वो नपुंसक (वीरहीन, निस्तेज) निकले और महिला को शारीरिक सुख प्रदान न हो सके, तब इस स्थति में महिला क्या करेगी ? क्या वो शारीरिक सुख (सम्भोग) के लिए अन्य पुरुषो से व्यभिचार नहीं करेगी ? इससे तो व्यभिचार बढ़ेगा। घटने का तो सवाल ही नहीं क्योंकि जब तक वो नपुंसक खाविंद उक्त महिला के साथ सम्भोग नहीं करता, उसका तलाक़ देना मंजूर नहीं, न ही वो महिला तीसरा निकाह कर सकती है, इसलिए उसे मजबूरन अपना शारीरिक शोषण और दोहन करवाना ही होगा।

कितनी ही कुरीतिया जो इस्लाम में व्याप्त हैं, खुला, हलाला, मुताह, निकाह मिस्यार (कॉन्ट्रैक्ट मैरिज), जिहाद अल निकाह आदि अनेको कुरीतिया जो केवल और केवल, महिलाओ का शोषण करती हैं, उन्हें भोग की वस्तु मानकर महिला की अस्मत आबरू बर्बाद करती हैं, महिला को खेलने वाला खिलौना बना डालती हैं, लेकिन इन विषयो पर कभी बुद्धिजीवियों का ध्यान नहीं जाता, ये विषय कभी भी सामाजिक पटल पर नहीं उठाये जाते, हाँ महर्षि दयानंद द्वारा जो नियोग विषय है, उसपर सभी बुद्धिजीवियों के कान खड़े हो जाते हैं, जबकि आज उसी आधुनिक रीति वाले नियोग को वैज्ञानिक IVR कहते हैं, जिससे निसंतान दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त होता है, इस व्यवस्था को विज्ञानं ने नया आयाम दिया, उसको दिन रात कोसना, मगर जो कुरीतिया समाज को बर्बाद कर रही, महिला की अस्मत को नेस्तनाबूत कर रही उन पर कोई विचारक, बुद्धिजीवी अपना मत प्रकट नहीं करता।

खेद है की अपने को आधुनिक, चिंतक और बुद्धिजीवी कहलाने वाले, नियोग (IVR) को तो कोसते हैं, मगर जो खुला, मुताह और हलाला जैसे घिनौने और दुष्कृत्य समाज में व्याप्त हैं उनपर चुप्पी साध लेते हैं। नियोग का वैज्ञानिक नजरिया कोसना, और महिलाओ पर अत्याचार करने वाली कुरीतिया पर मूक हो जाना निसंदेह किसी भी राष्ट्र के लोगो के लिए ठीक बात नहीं।

पोस्ट को पढ़ने हेतु धन्यवाद, ये पोस्ट सतीशचंद गुप्ता लिखित "सत्यार्थ प्रकाश समीक्षा की समीक्षा" के नियोग विषय से सम्बंधित अध्याय का जवाब है, इसके अभी और भी पार्ट आएंगे जिसमे विस्तार से समझाने का प्रयास किया जाएगा।

अगली पोस्ट में जो विचार हम करेंगे वो है :

1. नियोग और नारी का सम्मान

2. नियोग का आज के समाज में महत्त्व

3. इस्लाम में नियोग का महत्त्व

4. नियोग और विज्ञानं

5. संतान और नियोग व्यवस्था

धन्यवाद।

आइये लौटिए वेदो की और।

8 comments:

  1. Abhi apko Islamic study ki bahut jarurat h km jankari k Aadhar pr public ko Gumrah n kre dhanyavad

    ReplyDelete
    Replies
    1. अगर यह सच है तो मुझे कोई कुरान कि आयत या hadith देखा दो में कल ही हिन्दू बन जाऊँ

      Delete
  2. बेहुदा तुम्हें इस्लामी जानकारी बिकुल नहीं है, अच्छे से कोई मुफ्ती से मिलकर अध्ययन करो

    ReplyDelete
    Replies
    1. तो आप सही जानकारी दीजिए कि इस्लाम में इस तरह के विवाह का क्या अर्थ है

      Delete
  3. Islam ki jankari nahi fir bhi bakwas likh di

    ReplyDelete
  4. Islam ki galat jankari dekar niyog ko sahi nahi thehraya jata

    ReplyDelete
    Replies
    1. तो आप सही जानकारी दीजिए कि इस्लाम का इस तरह का विवाह या रिवाज क्या है

      Delete
  5. मेहर क्या है? कोई मुस्लिम बताये ।
    तथ्य सही होना चाहिए

    ReplyDelete