Tuesday, October 20, 2015

सतीश चंद गुप्ता द्वारा उठाये (4 पिछले पोस्ट के साथ) पहले अध्याय का जवाब पार्ट 5 (A)

पिछली पोस्ट में सतीश चंद गुप्ता जी द्वारा लिखित पुस्तक के पहले अध्याय में उठाये 15 पॉइंट में से 10 पॉइंट तक के जवाब दिए गए अब गत लेख से आगे बढ़ते हुए बाकी बचे हुए अन्य आक्षेपों तक के जवाब इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया जाएगा।

1. ईश्वर जगत का निमित्त (Efficient Cause) कारण है, उपादान कारण (Material Cause) नहीं है। (७-४५) (८-३)

इस आक्षेप में लेखक आगे लिखता है :

वैदिक धर्म एकेश्वरवाद का प्रतिपादन करता है और उसे सृष्टिकर्ता भी मानता है, मगर स्वामी दयानंद ने कहा की उपादान कारण के बिना जगत की उत्पत्ति संभव नहीं। ईश्वर, जीव और प्रकृति तीनो अनादि हैं। ईश्वर मात्र शिल्पी है, उसने सृष्टि का विकास किया है, सृजन नहीं किया। अर्थात जिस प्रकार कुम्भकार ने घड़ा बनाया, मिटटी नहीं बनाई, ठीक इसी प्रकार परमेश्वर ने जगत बनाया। प्रकृति और जीव दोनों संसाधन (Material) पहले से मौजूद थे।

समीक्षा : आइये देखिये लेखक ने महर्षि की बात को कितना समझा और जाना, महर्षि दयानंद ने ईश्वर, जीव और प्रकृति ये तीनो अनादि हैं का सार्वभौमिक और अटल सिद्धांत वेद ज्ञान के आधार पर ही दिया है, लेकिन कुछ लोग इसे पूर्ण न समझकर व्यर्थ आक्षेप करते हैं, देखिये महर्षि ने क्या समझाने का प्रयास किया है :

६-‘अनादि पदार्थ’ तीन हैं। एक ईश्वर, द्वितीय जीव, तीसरा प्रकृति अर्थात् जगत् का कारण, इन्हीं को नित्य भी कहते हैं। जो नित्य पदार्थ हैं उन के गुण, कर्म, स्वभाव भी नित्य हैं।

८-‘सृष्टि’ उस को कहते हैं जो पृथक् द्रव्यों का ज्ञान युक्तिपूर्वक मेल होकर नाना रूप बनना।

(स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाशः)

यहाँ विचारणीय है की ऋषि जिस महत्वपूर्ण सिद्धांत की और ध्यानाकर्षित कर रहे वो कितना विज्ञानपूर्ण महत्त्व रखता है देखिये, ये जगत जो कार्य रूप दिख रहा है, वह जड़ यानी अचेतन है, और ईश्वर चेतन सत्ता है, कोई भी चेतन सत्ता अपने में से कभी भी जड़ पदार्थ उत्पन्न नहीं कर सकती। क्योंकि चेतन सत्ता चेतन ही उत्पन्न करती है जो उसके जैसा ही होता है ये सार्वभौमिक नियम है। मनुष्य, पशु, पक्षी चेतन सत्ता हैं वे कभी जड़ पदार्थ उत्पन्न नहीं कर सकते। और जड़ पदार्थ जड़ होता है वो वैसे भी स्वयं से कुछ उत्पन्न नहीं कर सकता है। मुस्लिम बंधू अल्लाह को चेतन मानते हैं, लेकिन उसी चेतन से जड़ पैदा हुआ ये तथ्य कैसे स्वीकार्य है जबकि क़ुरान में कहीं नहीं लिखा की अल्लाह ने अपने में से धरती आकाश पैदा किये। यदि कहीं लिखा हो तो लेखक दिखाए ?

अब कुछ ऐसा भी कहते हैं चेतन से चेतन उत्पन्न होता है तो ईश्वर से जीव क्यों नहीं क्योंकि दोनों चेतन हैं तो इसका जवाब केवल इतने से ही समझ आ जायेगा की ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वव्यापी है तथा जीव अल्पज्ञ और एकदेशी है, ये दोनों सत्ता वस्तुतः चेतन हैं मगर दोनों के गुण भिन्न हैं, अतः ये सिद्ध है की ईश्वर और जीव भिन्न भिन्न चेतन सत्ता है क्योंकि यदि ईश्वर से ही जीव की उत्पत्ति हुई होती तो जीव भी सर्वज्ञ, सर्वव्यापी होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता, लेकिन दोनों ही चेतन सत्ता अजर हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति कभी नहीं होती और प्रकृति निर्जीव सत्ता है जो उपादान कारण है। इसमें वेद से प्रमाण है :

द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति ||
ऋग्वेद म.1| सू.164| म.20||

महर्षि दयानन्द जी ने इसके अर्थ इस प्रकार किये हैं -
(द्वा) जो ब्रह्म और जीव दोनों (सुपर्णा) चेतनता और पालनादि गुणों में सद्दश (सयुजा) व्याप्य व्यापक भाव से संयुक्त (सखाया) परस्पर मित्रतायुक्त सनातन अनादि हैं और (समानम्) वैसा ही (वृक्षम्) अनादि मूलरूप कारण और शाखारूप कार्ययुक्त वृक्ष अर्थात् जो स्थूल होकर प्रलय में छिन्न भिन्न हो जाता है वह तीसरा अनादि पदार्थ इन तीनों के गुण, कर्म और स्वभाव भी अनादि हैं (तयोरन्यः) इन जीव व ब्रह्म में से एक जो जीव है वह इस वृक्षरूप संसार में पापपुण्यरूप फलों को (स्वाद्वति) अच्छे प्रकार भोक्ता है और दूसरा परमात्मा कर्मों के फलों को (अनश्नन्) न भोक्ता हुआ चारों ओर अर्थात् भीतर बाहर प्रकाशमान हो रहा है | जीव से ईश्वर, ईश्वर से जीव और दोनों से प्रकृति भिन्न स्वरूप; तीनों अनादि हैं ।

अब क़ुरान से प्रमाण दिखाते हैं की ईश्वर (अल्लाह), जीव और प्रकृति तीन सत्ताएं अनादि हैं देखिये :

अल्लाह का ९९वे वा नाम "अल-बरी" है जिसके मायने हैं, "विकासक" अर्थात जो विकास करता है। अब क़ुरान से वो आयत दिखाते हैं जहाँ अल्लाह को विकासक बताया है :

"अल्लाह प्रत्येक वस्तु को उस की स्थति के अनुसार उसे आकृति एवं रूप प्रदान करने वाला है।"

(क़ुरान ५९:२५)

आइये अब दिखाते हैं क़ुरान की वो आयत जिसमे सृष्टि को अनादि बताया गया है :

फिर उसने आकाश की और ध्यान दिया और (आकाश) केवल एक प्रकार के कुहरा सामान था। उस (अल्लाह) ने उस (आकाश) से तथा धरती से कहा की तुम दोनों स्वेच्छापूर्वक या अनिच्छापूर्वक मेरी आज्ञा का पालन करने के लिए आ जाओ, तो वे दोनों बोले की हम आज्ञाकारी बन कर आ गए हैं।

(क़ुरान ४१:१२)

उपरोक्त आयत में आकाश और धरती पहले से विद्यमान है, जब अल्लाह ने बुलाया तो अत्यंत आज्ञाकारी बनकर आ गए। अतः इस आयत में अल्लाह के अतिरिक्त एक निर्जीव सत्ता विद्यमान तो है, पर वो निर्जीव सत्ता सुन सकती है, ऐसा अद्भुद विज्ञानं हमें क़ुरान पढ़ने पर ही ज्ञात हुआ।

क्या इंकार करने वालो ने यह नहीं देखा की आकाश तथा धरती दोनों बंद थे। अतः हमने उन्हें खोल दिया।

(क़ुरान २१:३१)

यहाँ भी आकाश और धरती पहले से ही विद्यमान हैं जो कारण रूप में हैं उन्हें अल्लाह मियां कार्य रूप में ले आये।

निस्संदेह तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानो और जमीन को छह दिनों में पैदा किया है, फिर वह राज सिंघासन पर दृढ़ता पूर्वक विराजमान हो गया।

(क़ुरान ७:५५)

यहाँ अल्लाह और अल्लाह का सिंघासन पहले से विद्यमान है, अतः सिद्ध है की अल्लाह के साथ साथ एक निर्जीव सत्ता अनादि है। लेकिन सोचने वाली बात यह यह की जो सर्वशक्तिमान सत्ता "अल्लाह" मात्र कहता है और हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है मगर सृष्टि को बनाने में छह दिन लग गए ? ये हमें क़ुरान पढ़ने पर ही ज्ञात हुआ।

और वही है जिसने आसमानो और जमीन को छह दिनों में पैदा किया है ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले की तुम में से किन कर्म अधिक अच्छे हैं और उसका अर्श पानी पर है।

(क़ुरान ११:८)

यहाँ अल्लाह के सिंघासन के साथ साथ पानी भी अनादि तत्व विद्यमान है।

और आसमान फट जाएगा तथा वह उस दिन बिलकुल कमजोर दिखाई देगा (१७)

और फ़रिश्ते उस के किनारो पर होंगे तथा उस दिन तेरे रब्ब के अर्श (सिंघासन) को आठ फ़रिश्ते उठा रहे होंगे। (१८)

क़ुरान (६९:१७-१८)

यहाँ जब प्रलय आ जाएगी उसके बाद की कहानी बताई जा रही है, अतः सिद्ध है की अल्लाह का सिंघासन और उसको उठाने वाले फ़रिश्ते अनादि हैं। लेकिन आकाश फाड़कर प्रलय आएगी ये क़ुरान का विज्ञानं सोचने वाला है।

वे नरक (की आग में पड़ने) वाले हैं और इसमें पड़े रहेंगे। (८२)

और जो लोग ईमान लाये हैं तथा शुभ कर्म किये हैं वे उसमे सदैव निवास करेंगे। (८३)

(क़ुरान २:८२-८३)

यहाँ जीवो की स्थति बताई है, जो अल्लाह और रसूल का इंकार करने वाले और अल्लाह की नजर में यही सबसे बुरा कर्म है, अतः जो ऐसे बुरे कर्म करने वाले हैं नरक में जायेंगे और जो ईमान लाये वो जन्नत जायेंगे तथा उसमे वे सदैव रहेंगे।

अर्थात क़ुरान के अनुसार भी ईश्वर, जीव और प्रकृति अनादि सिद्ध होते हैं। क्योंकि प्रलय (क़यामत) के बाद अल्लाह जीवो को इकठ्ठा करेगा और जन्नत जहन्नम को उनसे भरेगा। अब हमारा सवाल लेखक से है की जब क़यामत में यदि पूरी दुनिया और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तो जन्नत में अंगूर, दूध की नहर, सोने के कड़े, सुन्दर बिछौने, और हूरे गिलमा आदि जन्नती मनुष्यो के साथ सदैव रहेंगे और जहन्नम में आग, जक्कूम का वृक्ष और खोलता पानी वहां के जीवो के साथ सदैव रहेगा तो ऐसा कैसे संभव है की दुनिया भी नष्ट होगी और ये सब भी रहेगा ? क्या लेखक को अब भी संदेह है की सृष्टि अनादि नहीं ?

ये ही कुछ उपरोक्त आयतो और क़ुरान में मौजूद अनेको आयतो को पढ़ने के बाद ये सिद्ध हो जाता है की लेखक ने केवल पूर्वाग्रह के आधार पर ही ऋषि के सत्यार्थ प्रकाश पर अपनी अज्ञानता पूर्ण टिका टिप्पणी की हैं, यदि क़ुरान का अवलोकन ही कर लिया होता तो ऐसी शंकाए उठाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती।

2. सृष्टि का प्रारम्भ नहीं है, अर्थात सृष्टि का कोई आदि सिरा नहीं है। (८:५३)

समीक्षा : शायद लेखक ने महर्षि की बात को सही से समझने का प्रयास ही नहीं किया क्योंकि लेखक के लेखन से महसूस होता है की लेखक केवल ऋषि की बातो पर आक्षेप ही करना चाहता है, समझना कुछ भी नहीं, देखिये ऋषि ने क्या कहा :

८-‘सृष्टि’ उस को कहते हैं जो पृथक् द्रव्यों का ज्ञान युक्तिपूर्वक मेल होकर नाना रूप बनना। (स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाशः)

यानि जब जब कारण रूप से कार्य रूप में सृष्टि आएगी यानि जब जब जगत लय (छुप, कारण) को प्राप्त होकर दृश्य (कार्य) रूप में आएगा आएगा ये सृष्टि है। ये कार्य निरंतर चलता है। यानी जब जब प्रलय आएगी तब रात्रि और जब जब सृष्टि पुनः अस्तित्व में आयगी तब दिन स्वरुप समझे। ये प्रत्येक कल्प (१४ मन्वन्तर) तक सृष्टि कार्य रूप रहती है, इसे सामान्य भाषा में ब्रह्म दिन के नाम से जानते हैं। और जब ये समय पूरा हो जाता है तब प्रलय होती है इसे इसे सामान्य भाषा में ब्रह्म रात्रि के नाम से जानते हैं। जितने समय यानी १४ मन्वन्तर का दिन होता है उतने ही समय की रात्रि होती है। यानी प्रलय के बाद ये सब जगत सूक्ष्म रूप (कारण अवस्था) में रहता है।

७-‘प्रवाह से अनादि’ जो संयोग से द्रव्य, गुण, कर्म उत्पन्न होते हैं वे वियोग के पश्चात् नहीं रहते परन्तु जिस से प्रथम संयोग होता है वह सामर्थ्य उन में अनादि है और उस से पुनरपि संयोग होगा तथा वियोग भी, इन तीनों को प्रवाह से अनादि मानता हूँ। (स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाशः)

जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन, ऐसे ही रात से पूर्व दिन और दिन से पूर्व रात रहता है, इसी कारण से ऋषि ने सृष्टि क्रम को अनादि कहा है। इसे प्रवाह रूप कहते हैं, अब इसमें दिन पहले आया या रात शायद लेखक बता सके ?

आइये अब लेखक को क़ुरान क्या कहती है वो दिखाते हैं :

और वह संसार की उत्पत्ति को आरम्भ भी करता है और फिर उसे बार बार दोहराता रहता है और यह बात उसके लिए अति सुगम है।

(कुरान ३०:२८)

यहाँ संसार की उत्पत्ति बताई है और आरम्भ साथ में ये प्रोसेस बार बार चलता रहता है ये भी स्पष्ट कर दिया है, क्या अब समीक्षा करने में निपुण लेखक क़ुरान की इस आयात की समीक्षा करके बता पाएंगे की जब बार बार यानि प्रवाह से अनादि चक्र सृष्टि का चल रहा है तो इसका पहली बार सृजन कब हुआ ?

ऐसी ही क़ुरान में अनेको आयते हैं जिनमे सृष्टि को प्रवाह से अनादि बताया है, जब ऋषि ने वेदादि आर्ष ग्रंथो को पढ़कर सत्यार्थ प्रकाश में भी यही बताया तो इससे लेखक की सत्याग्रही सोच प्रदर्शित नहीं होती जबकि पूर्वाग्रह से ग्रस्त मानसिकता का बोध अवश्य ही होता है।

3. सम्पूर्ण मानवता एक माँ बाप की संतान नहीं है (८:५१)

समीक्षा : समीक्षक महोदय अपने आक्षेपों की प्रक्रिया में कुछ इस कदर फंसे की विज्ञानं और सामजिक ताने बाने को पूरी तरह ताक पर रख दिया, यहाँ तक की समीक्षक ने उस सिद्धांत की धज्जिया उड़ा दी जिससे सामजिक परिवेश में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक संरचना और पारिवारिक मूल्यों में बढ़ती होती है, मगर समीक्षक को शायद सामाजिक परिवेश और नैतिक मूल्यों से कोई सरोकार नहीं मगर नियोग जैसी व्यवस्था पर बेवजह एक अध्याय लिखने तक को तैयार हैं, मगर कुरान में प्रतिपादित अनेको कुरीतियों और व्यवस्थाओ पर समीक्षा को तैयार नहीं उसी का नतीजा है की पूरी तरह अप्राकृतिक और अवैज्ञानिक आधार पर भी सम्पूर्ण मानवता को एक माँ बाप की संतान सिद्ध करने पर समीक्षक का पूरा जोर है, जबकि ये सिद्धांत न तो कुरान मानने को तैयार है और ना ही महर्षि दयानंद को ही ये बात स्वीकार हुई मगर समीक्षक को आपत्ति है, आइये पहले क़ुरान, बाइबिल और वेद के आलोक में देखे :

बाइबिल :

"Polls by Gallup and the Pew Research Center find that four out of 10 Americans believe humanity descend from Adam and Eve, but NPR reports that evangelical scientists are now saying publicly that they can no longer believe the Genesis account and that it is unlikely that we all descended from a single pair of humans.'That would be against all the genomic evidence that we've assembled over the last 20 years so not likely at all,'says biologist Dennis Venema, a senior fellow at BioLogos Foundation,

गैलप एंड द पिउ रिसर्च सेंटर द्वारा किये गए पोल्स में प्रत्येक १० अमेरिकी नागरिको में से ४ ने स्वीकार किया की सम्पूर्ण मानवता आदम और हव्वा से निकली है, लेकन एनपीआर रिपोर्ट्स के मुताबिक इंजील के शोधकर्ताओं का अब ये मानना है और ये बात वो सार्वजानिक तौर से बता भी रहे हैं की उत्पत्ति अध्याय के आधार पर सम्पूर्ण मानवता एक माता पिता (आदम हव्वा) की संतान नहीं है। डेनिस वेनेमा बायोलोगोस फाउंडेशन की वरिष्ठ बाोलॉजिस्ट का कहना है की उनकी संस्था द्वारा पिछले २० वर्षो में एकत्र किये गए जेनेमिक प्रमाणों से आदम हव्वा का सिद्धांत एकदम उलट है, यानी सम्पूर्ण मानवता के जो जेनेमिक आंकड़े पाये गए वो एक माता पिता के नहीं अनेको माता पिता के हैं।

"दा इकोनॉमिस्ट" द्वारा नवंबर २०१३ में प्रायोजित चर्चा कार्यक्रम में इंजील के शोधकर्ताओं ने माना और विज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया की सम्पूर्ण मानवता कम से कम १०,००० (दस हजार) दम्पत्तियों (माता पिता) की संतान है, एक आदम और हव्वा की नहीं।

अब थोड़ा क़ुरान का नजरिया :

हमने उन्हें कहा की "निकल जाओ। तुम में से कुछ व्यक्ति एक दूसरे के हैं।

(क़ुरान २:३७)

यहाँ ध्यान देने वाली बात है की अल्लाह मियां वर्तमान भाव में कह रहे हैं की तुम में कुछ व्यक्ति एक दूसरे के शत्रु हैं, यहाँ भविष्यवत आधार पर नहीं कहा जा रहा की तुम में से कुछ एक दूसरे के शत्रु होंगे, क्योंकि उस समय भी आदम हव्वा अकेले नहीं थे, अनेको स्त्री पुरुष थे।

तब हमने कहा की तुम सब के सब इस में से निकल जाओ।

(क़ुरान २:३९)

यहाँ भी अल्लाह मियां ने पहले वाली आयत के आधार पर ही सभी को निकलने का आदेश दिया है, क्योंकि यदि अकेले आदम हव्वा होते तो "सब के सब" निकल जाओ ये न कहते, तुम दोनों निकल जाओ ऐसा कहते। अतः सिद्ध है की अनेको आदि मनुष्यो द्वारा मनुष्य जाती उत्पन्न हुई।

अब थोड़ा वैज्ञानिक नजरिया :

आस्तिक विकासवाद की धारा से ओतप्रोत डॉ. फ्रांसिस कॉलिन्स अपनी पुस्तक The Language of God: A Scientist Presents Evidence for Belief में लिखते हैं की मनुष्य जाती की उत्पत्ति कम से कम दस हजार दम्पत्तियों (माता पिता युग्म) द्वारा संभव है जो आज से १ लाख से लेकर 1.5 लाख वर्षो पूर्व रहे होंगे।

यहाँ इस पुस्तक में डॉ फ्रांसिस कॉलिन्स ने वैज्ञानिक (जेनेटिक) आधार पर इस बात का निष्कर्ष निकाला है। और इसी पुस्तक के आधार पर आदम हव्वा का महज ५००० वर्ष पुराना इतिहास होना खंडित हो जाता है। क्योंकि वैज्ञानिको ने हाल में ही ४ लाख वर्ष पुराना ह्यूमन फॉसिल खोज निकाला है। अतः जैसे जैसे वैज्ञानिक नए शोध करते जाएंगे वैसे वैसे वेद और आर्य सिद्धांत प्रबल होते जायेंगे। हम समीक्षक से आग्रह करते हैं वो विज्ञानं आधार पर आदम और हव्वा से मानव सृष्टि की उत्पत्ति महज ५००० वर्ष पूर्व हुई ये साबित कर दिखाए अथवा इस विषय पर भी समीक्षा करे ताकि सत्य का ज्ञान मनुष्यो के बीच प्रकट हो सके।

4. वेद आवागमनीय पुनर्जन्म की अवधारणा का प्रतिपादन करते हैं। (9-75)

समीक्षा : वैदिक सिद्धांत सार्वभौमिक हैं, अटल हैं, शाश्वत सत्य हैं, कभी नहीं बदल सकते मगर लेखक शायद समीक्षाओं की समीक्षा में इतना व्यस्त हुए की सत्य को भी नजर अंदाज़ कर दिया। आइये पहले हम क़ुरान में देखते हैं की पुनर्जन्म विषय पर कुरान का क्या कहना है :

जिस प्रकार उसने तुम्हारा प्रारम्भ किया था। तुम फिर एक दिन उसी पहली हालत की और लौटोगे।

(क़ुरान ७:३०)

पहली बार कैसे पैदा किया था जरा उस पर ध्यान दीजिये :

हमने तुम्हे सर्वप्रथम मिटटी से पैदा किया था, फिर वीर्य से, फिर उन्नति दे कर एक ऐसी अवस्था से जो चिपट जाने का गुण रखती थी, फिर ऐसी अवस्था से की वह मांस की एक बोटी के सामान थी, ……… फिर हम तुम्हे एक बच्चे के रूप में निकलते हैं।

(क़ुरान २२:५)

यहाँ प्रथम बार कैसे उत्पत्ति की जाती है उसका विस्तार से उल्लेख है और ऊपर वाली आयत में बताया गया की जैसे पहली बार उत्पन्न किया वैसे ही पहले वाली हालत में पुनः लौटोगे। तो ये पुनर्जन्म क्यों नहीं ?

अन्य क़ुरानी आयत

फिर जब उन्होंने उन बातो से रुकने की अपेक्षा जिन से उन्हें रोका गया था और भी आगे बढ़ना शुरू किया तो हमने उन्हें कहा की तुच्छ (जलील) बंदर बन जाओ।

(क़ुरान ७:१६७)

यहाँ आयत में पुनर्जन्म सिद्ध होता है क्योंकि अल्लाह ने पूरी बस्ती के लोगो यानी मनुष्यो को बन्दर बना दिया क्योंकि उन्होंने अल्लाह की केवल नसीहत मानने से मना कर दिया। क्या ये अल्लाह की दया और कृपा है ? लेखक इस पर अपने विचार कब प्रकट करेंगे ?

यहाँ ये बात स्पष्ट है की जीव जो है वो पशु में भी है और मनुष्य में भी, और ये भी सिद्ध हुआ की मनुष्य में जो जीव है वो ही पशु आदि में पुनर्जन्म धारणा से शरीर धारण कर सकता है और जो पशु आदि का जीव है वो मनुष्य का लेकिन इसके पीछे कर्मो के फल की धारणा अवश्य होनी चाहिए अन्यथा यदि केवल अल्लाह की नसीहत नहीं मानने के कारण ही ऐसा हो तो ऐसे में अल्लाह अन्यायकारी ही ठहरेगा।

4. वे कहेंगे की हे हमारे रब ! तूने हमें दो बार मौत दी और दो बार जीवित किया।
(क़ुरान ४०:१२)

यहाँ भी इस आयत में पुनर्जन्म सिद्ध होता है, क्योंकि यदि एक बार ही मौत और एक बार ही जन्म होता तो यहाँ ऐसे नहीं लिखा जा सकता था, इसके अतिरिक्त भी पूरी क़ुरान में अल्लाह ने पुनर्जन्म विषय में अनेक बार मृत जमीन और वर्षा का दृष्टांत किया जिसमे अल्लाह ने बार बार जोर देकर समझाया है की ईमान वालो को और धरती में मौजूद सभी लोगो के लिए बड़ी निशानी है की वो मृत जमीन पर आकाश से पानी बरसता है तो वो जीवित हो उठती है क्या वो तुम्हे इसी प्रकार जीवित नहीं करेगा। (क़ुरान ४५:६, २:१६५) आदि अनेको प्रमाण क़ुरान में ही मौजूद हैं जो अल्लाह द्वारा बुद्धिमान जाती के लिए बड़ी निशानियों में शुमार है की वर्षा केवल एक बार ही नहीं होती जो मृत धरती को जिन्दा करे बल्कि बारम्बार होती है, ये निरंतर प्रक्रिया है, शाश्वत सत्य है, अब देखना ये है की समीक्षक इस विषय पर अपनी समीक्षा कब करते हैं।

अब इस विषय पर विज्ञानं से रौशनी डालते हैं, जो भी पदार्थ है वो कभी नष्ट नहीं होता जैसे पानी भाप बनकर उड़ जाता है पुनः बादलो के रूप में एकत्रित होकर बरसता है फिर भाप बनकर उड़ जाता है, ठीक ऐसे ही लकड़ी से सामान बना, उसके बाद अन्य कार्य में लिया गया अलमारी आदि बनाने में, पश्चात ख़राब होने पर जलाया तो कोयला बना, कोयले से राख, राख से मिटटी और फिर उसी मिटटी से पुनः पेड़ पौधों के रूप में उग आता है। यह सार्वभौमिक सत्य है, आपने न्यूज चॅनेल और अनेको अखबारों में खबर भी पढ़ी होंगी की अमुक व्यक्ति को अपना पिछला जन्म याद आ गया, अमुक ने अपने पूर्व जन्म की माता पिता आदि कुटुम्बियों से मेल किया आदि अनेको खबरे प्राप्त होती हैं, इस विषय पर अनेको विज्ञानिको ने रिसर्च भी की है और प्रमाणित भी किया है उनमे से एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ इयान स्टेवेंसन्स हैं, उन्होंने अपनी अनेको किताबो "Twenty Cases Suggestive of Reincarnation (1966), "European Cases of the Reincarnation Type" (1972), आदि अनेको पुस्तको के माध्यम से पुनर्जन्म अवधारणा को प्रमाणित किया जिनको आज तक मनोवैज्ञानिक अपने वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे तो यहाँ ही विस्तार से बता दिया फिर भी विषय से सम्बंधित अन्य अध्याय में विस्तार से बताया जा सकता है, क्योंकि समीक्षक की पुस्तक में पुनरुक्ति दोष का बारम्बार प्रकट होना समीक्षक की पुस्तक और लेखन तथा ज्ञान पर दोष प्रकट करता है, अब चाहे तो समीक्षक अपनी अगली पुस्तक में ऐसी गलती न दोहराये ये उनकी इच्छा पर निर्भर है।

दो पॉइंट इस पोस्ट में छूट गए जो की पोस्ट की शब्द सीमा होने कारण यहाँ नहीं लिखे जा रहे, अतः अगली पोस्ट में उनको पढ़ लेवे 

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