Tuesday, October 20, 2015

सतीश चंद गुप्ता द्वारा उठाये पहले अध्याय के 6-10 / 15 पॉइंट का जवाब ...... पार्ट 3


पिछली पोस्ट में सतीश चंद गुप्ता जी द्वारा लिखित पुस्तक के पहले अध्याय में उठाये 15 पॉइंट में से 5 के जवाब दिए गए अब गत लेख से आगे बढ़ते हुए 6 से 10 पॉइंट तक के जवाब इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया जाएगा।

6. मांस खाना जघन्य अपराध है। मांसाहारियों के हाथ का खाने में आर्यों को भी यह पाप लगता है। पशुओं को मारने वालों को सब मनुष्यों की हत्या करने वाले जानिएगा। (10-11 से 15)

समीक्षा : लेखक की इस समीक्षा का जवाब देने से पहले हम बता दे की ये पॉइंट भी "पुनरक्ति दोष" में आता है, क्योंकि लेखक की पुस्तक में "जीव हत्या और मांसाहार" - अहिंसा परमो धर्मः" और "शाकाहार का प्रोपेगंडा" ये तीन अध्याय मांस भक्षण पर ही आधारित है तब पहले अध्याय में भी इस पॉइंट को जताना और फिर तीन अध्याय एक ही विषय पर बनाने, ये कोई विद्वान लेखक का काम तो हो नहीं सकता, शायद इसी कारण से लेखक महर्षि दयानंद की सत्यार्थ प्रकाश समझ भी न सका और समीक्षाओं का समीक्षा कर डाली,

खैर पॉइंट बनाया है तो इस पॉइंट का जवाब भी शार्ट में ही दिया जाएगा, क्योंकि हम अपने लेखन में "पुनरक्ति दोष" नहीं चाहेंगे। विस्तार से जवाब सम्बंधित विषय के अध्याय में दिया जायेगा।

इस पॉइंट का जवाब देने के लिए हम क़ुरान की कुछ आयते प्रकट करना चाहते हैं देखिये :

और धरती पर चलने वाले सब के सब जानवर तथा अपने दोनों पंखो से उड़ने वाले पक्षी तुम्हारी तरह की जमाते (दल) हैं। (क़ुरान ६:३८)

इस आयात में बताया की जैसे मनुष्य हैं वैसे ही हमारी तरह पशु पक्षी भी हैं।

क्या तू देखता नहीं की अल्लाह वह है की जो कोई आसमानो और जमीन में निवास करते हैं सब उसी का गुण-गान करते हैं और उसी के सामने पक्षी पंक्तिबद्ध हो कर उपस्थित हैं। उनमे से प्रत्येक (अपने प्राकृतिक स्वाभाव के अनुसार) अपनी उपासना एवं अपने स्तुति गान को जानता है ……………
(क़ुरान २४:४२)

इस आयत में बताया जैसे मुस्लिम बंधू नमाज करते हैं वैसे ही प्रत्येक पशु पक्षी अपनी अपनी भाषा में उस ईश्वर की उपासना करते हैं यानी वो पशु पक्षी भी मुस्लिम हैं। यदि ऐसा कहो की प्रत्येक माँसाहारी पशु शाकाहारी पशु को अपना भोजन बनाता है, तो यहाँ ये समझने वाली बात होगी की यदि हम भी खुद को पशु मान ले तब तो हमें किसी अन्य पशु को खाने में कोई बुराई न दिखेगी, मगर हम अपने को पशु समझते हैं ? हम तो मनुष्य हैं जो अल्लाह की बनाई सर्वोत्कृष्ट रचना है तो क्या हम अपनी बुद्धि उपयोग न करे ? या केवल पशु के मांस खाने के चक्कर में अपनी जीभ लोलुपता से मनुष्य होते हुए भी पशु से भी निम्न दर्जे के जाकर हैवान बनकर मांसभक्षण करे ?

क्या ये मनुष्यता होगी ?

अथवा मुहम्मद साहब की सिखाई तालीम की पशुओ की सेवा करो, पशुओ को ना मारो, आदि उत्तम बातो का ग्रहण कर वेद धर्म का पालन कर मनुष्य बने रहे।

और हमने धरती को सारी मखलूक के भले के लिए बनाया है।
(क़ुरान ५५:११)

जैसे मनुष्यो है वैसे ही पशु पक्षी भी हैं और सभी मखलूक के जीने का अधिकार अल्लाह ने दिया है , उनके भले के लिए धरती बनाई है तब कैसे किसी मनुष्य को किसी पशु अथवा पक्षी की जान लेने का अधिकार मिला ? क्यों वो किसी पशु पक्षी की जिंदगी लेकर अपनी भूख मिटाता है ? क्या अल्लाह यही चाहता है या मुहम्मद साहब ने ऐसा आदेश किया है ?

आइये हदीस से दिखाते हैं मुहम्मद साहब ने क्या निर्देश किया है :

अबु हुरैरा ने बताया की रसूल से कुछ लोगो ने पूछा की क्या पशुओ की सेवा सुश्रुवा करने से हमें प्रतिफल (इनाम) मिलेगा ?

रसूल ने कहा हाँ, किसी भी पशु पक्षी व जीवित प्राणी की सेवा करने से प्रतिफल (इनाम) मिलता है, ऐसी सेवा करने वाले मनुष्यो को अल्लाह धन्यवाद देता है और उनके पाप माफ़ करता है।

Reference : Sahih al-Bukhari 6009
In-book reference : Book 78, Hadith 40
USC-MSA web (English) reference : Vol. 8, Book 73, Hadith 38

अब बताओ, लेखक महोदय क्या अब भी अल्लाह, क़ुरान और रसूल की इतनी दयापूर्ण बातो को नकार कर, केवल जीभ के स्वाद के लिए पशुओ की निर्दयता से हत्या करकर अपना पेट भरना चाहोगे ?

जब क़ुरान भी पशु पक्षियों को मनुष्यो की जमात मानता है, उन्हें भी धरती पर रहने का सामान अधिकार अल्लाह और क़ुरान देता है, मुहम्मद साहब पशु पक्षियों को बेजबान मानकर उनकी सेवा करने को उम्दा कर्म बताते हैं, और तो और पशु पक्षियों को अल्लाह ने नमाज़ पढ़ने वाला मुस्लिम तक मान
लिया तब भी क्या एक मुस्लिम दूसरे मुस्लिम का क़त्ल कर उसे खा कर पेट भरे तो उसे पाप नहीं तो क्या लेखक महोदय पुण्य का कार्य कहेंगे ?

The Holy Prophet(s) used to say: "Whoever is kind to the creatures of God, is kind to himself." (Wisdom of Prophet Mohammad(s); Muhammad Amin; The Lion Press, Lahore, Pakistan; 1945).

इसे पढ़िए और समझिए - मुहम्मद साहब जो इतने बड़े और महान पशु पक्षी प्रेमी थे जो सभी पशु पक्षियों मनुष्यो में एक ही जीव देखते थे, जो दयालुता के पैरोकार थे, कृपया उनके नाम पर जीव-हत्या करके खाना और पाप न मानना उलटे महर्षि दयानंद जी पर आक्षेप कर देना जो क़ुरान और मुहम्मद साहब की कही सत्य बात "जीव हत्या पाप" के सन्दर्भ में ही लेखक का शंका और सवाल उठा देना ये कोई विद्वान मनुष्य का कार्य नहीं हो सकता।

7. मुर्दों को गाड़ना बुरा है क्योंकि वह सड़कर वायु को दुर्गन्धमय कर रोग फैला देते हैं। (13-41, 42)

समीक्षा : यहाँ इस विषय पर केवल शार्ट में प्रकाश डाला जा रहा है ताकि विस्तार से सम्बंधित विषय पर आधारित अध्याय में बताया जा सके। देखिये कोई भी जीव चाहे मनुष्य हो अथवा पशु व पक्षी मरते ही हैं और शरीर से आत्मा का वियोग होने पर वह शरीर रोगाणुओं और जीवाणुओ का घर बन जाता है जो सड़ता है, क्योंकि शरीर में मौजूद जो मिक्रोजियम्स हैं वह शरीर को अंदर से सडाना स्टार्ट करते हैं जिससे मृत शरीर का pH बैलेंस बिगड़ता है और अति दुर्गन्ध बदबू आनी स्टार्ट हो जाती है, जब यह मृत शरीर जमीन में गाड़ा जाता है तब pH बैलेंस बहुत अधिक हो जाता है और प्राकृतिक रूप शरीर के "गुड न्यूट्रिएंट्स" बाहर नहीं निकल पाते जिससे जमीन के अंदर ही विकार उत्पन्न होता है और अधिक बदबू आती है।

इसका एक दूसरा पहलु और भी है इस तरह के मृत शरीर को दफनाए जाने से जमीन में सोडियम की मात्रा २०० से २००० गुना अधिक तक बढ़ जाती है जिससे पेड़ पौधों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

तीसरा महत्वपूर्ण कारण है की मृत शरीर को दफनाने पर जमीन में अनेक तरह के बेक्टेरिआ और जानलेवा टॉक्सिन्स का निर्माण होने लगता है, अधिकतर पशुओ को जमीन में दफनाने से एक खतरनाक टोक्सिन botulinum टोक्सिन उत्पन्न होता है जो धरती में मौजूद पानी को विषैला करता जाता है जिससे कैंसर और अनेक प्रकार की भयंकर बीमारिया उत्पन्न होती हैं।

अब आप लोग खुद भी सोचिये की क़ुरान में कहीं भी मृत शरीर को दफनाने का वर्णन मिलता भी नहीं है, तो क्यों व्यर्थ ही शरीर को दफनाया जाता है ? क्या लेखक कोई आयत क़ुरान में से दे सकते हैं जो मृत शरीर को दफनाने के लिए अल्लाह ने नाजिल की हो ?

8. लघुशंका के पश्चात् कुछ मुत्रांश कपड़ों में न लगे, इसलिए ख़तना कराना बुरा है। (13-31)

समीक्षा : लेखक ने ऋषि की क़ुरान पर की गयी समीक्षाओं पर अपनी इतनी व्यर्थ समीक्षाएं की हैं की वे शायद भूल गए की खतना करना खुद क़ुरान का आदेश नहीं है, पूरी क़ुरान में कहीं भी अल्लाह ने खतना का आदेश नहीं दिया, जब क़ुरान खुद खतना का आदेश नहीं करती तब लेखक को इसके फायदे व नुकसान का अंदाजा नहीं हो सकता, क्योंकि अल्लाह सर्वज्ञ है इसलिए उसने क़ुरान में खतना का आदेश नहीं किया क्योंकि वो जानता है की खतना करना वैज्ञानिक नहीं। क्योंकि ऋषि की बात जायज़ है, यदि अल्लाह खतना का आदेश करता तो पहले ही मनुष्य को खतना करके भेजता लेकिन ऐसा नहीं किया इसके विपरीत लेखक ने खुदाई काम यानि मानव शरीर से छेड़छाड़ और क़ुरान की शिक्षा पर ही आक्षेप किया है, देखिये :

(यह सभी गवाहियाँ बताती हैं की) निसंदेह हम ने मानव को अच्छी से अच्छी अवस्था में पैदा किया है।
(क़ुरान 95:4)

और हमने मनुष्य को गीली मिटटी के सत से बनाया। (१३)

फिर उसे एक ठहरने वाले स्थान में वीर्य के रूप में रखा। (१४)

फिर वीर्य को प्रगति देकर ऐसा रूप प्रदान किया की वह चिपकने वाला एक पदार्थ बन गया, फिर उस चिपकने वाले पदार्थ को मांस की एक बोटी बना दिया, फिर हमने इसके बाद उस बोटी को हड्डियों के रूप में बदल दिया, फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढ़ाया। फिर उसे एक और रूप में बदल दिया। अतः बड़ी बरकत वाला है वह अल्लाह जो सब से अच्छा पैदा करने वाला है। (१५)

(क़ुरान २३:१३-१५)

जिस ने जो कुछ भी पैदा किया है सर्वोत्तम शक्तियों से पैदा किया है और मनुष्य को गीली मिटटी से पैदा किया है। (८)

फिर उसे पूर्ण शक्तिया प्रदान की और उसमे अपनी और से आत्मा डाली तथा तुम्हारे लिए कान, आँख और दिल बनाये, परन्तु तुम लेश मात्र भी धन्यवाद नहीं करते। (१०)

(क़ुरान ३२:८-१०)

अतः तू अपना सारा ध्यान धर्म में लगा दे, इस प्रकार की तुम में कोई टेढ़ापन न हो। तू अल्लाह के पैदा किये हुए प्राकृतिक स्वाभाव को अपना, (वह प्राकृतिक स्वाभाव) जो अल्लाह ने लोगो में पैदा किया है। अल्लाह की रचना में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। यही कायम रहने वाला धर्म है, किन्तु बहुत से लोग जानते नहीं।

(क़ुरान ३०:३०)

उपरोक्त आयतो पर ध्यान से पढ़ने पर ज्ञात होता है की क़ुरान में अल्लाह ने स्पष्ट रूप से बता दिया है की अल्लाह ने मनुष्य को पूर्ण, उत्तम और सबसे बेहतर शरीर के साथ बनाया है, साथ ही अल्लाह ने बता दिया की उसकी बनाई संरचना में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता, न ही कोई करेगा, जो ऐसा कार्य करता है वह धर्म का कार्य नहीं हो सकता क्योंकि अल्लाह ने क़ुरान में ही कहा है :

इसी प्रकार उन लोगो को मूर्खता पूर्ण बातो की और बहका कर ले जाया जाता है जो अल्लाह की आयतो का हठ से इंकार करते हैं। (६४)

क़ुरान ४०:६४)

अब शायद लेखक को समझ आ जाना चाहिए की अल्लाह की बनाई सम्पूर्ण और सर्वोत्कृष्ट रचना जिसमे कोई खोट नहीं उसमे जबरदस्ती खतना करवाना न तो विज्ञानं पूर्ण कोई तथ्य है न ही क़ुरान का आदेश बल्कि अल्लाह की अवज्ञा करना ही सिद्ध होता है जिसे क़ुरान में मूर्खतापूर्ण बातो की और बहकाना या फिर शैतान का काम कहा जा सकता है।

अतः जो काम मात्र कुछ सेकंड में पानी से धोकर साफ़ किया जा सकता है , उसके लिए खतना करवाना क़ुरान अनुसार ठीक विदित नहीं होता। अतः ऋषि का कथन युक्तियुक्त है। इस विषय पर विस्तार से लेख भी लिखा जाएगा ताकि जो मिथक लेखक ने एड्स से बचाव के दिए हैं उनका खंडन आप सबको विदित होगा। अब लेखक बताये की वो क्यों क़ुरान के खिलाफ जाकर खतना करवाने की सलाह दे रहे हैं ?

9. दंड का विधान ज्ञान और प्रतिष्ठा के आधर पर होना चाहिए। (6-27)

समीक्षा : लेखक शायद समीक्षा करने में ये बात भूल गए की ऋषि ने कितनी उत्तम दंड विधान की और इशारा किया है, शायद लेखक केवल पूर्वाग्रह का शिकार है जो ऋषि की इतनी महान सोच को भी न समझ पाया देखिये :

जिस अपराध में साधारण मनुष्य पर एक पैसा दण्ड हो उसी अपराध में राजा को सहस्र पैसा दण्ड होवे अर्थात् साधारण मनुष्य से राजा को सहस्र गुणा दण्ड होना चाहिये। मन्त्री अर्थात् राजा के दीवान को आठ सौ गुणा उससे न्यून सात सौ गुणा और उस से भी न्यून को छः सौ गुणा इसी प्रकार उत्तर-उत्तर अर्थात् जो एक छोटे से छोटा भृत्य अर्थात् चपरासी है उस को आठ गुणे दण्ड से कम न होना चाहिये। क्योंकि यदि प्रजापुरुषों से राजपुरुषों को अधिक दण्ड न होवे तो राजपुरुष प्रजा पुरुषों का नाश कर देवे, जैसे सिह अधिक और बकरी थोड़े दण्ड से ही वश में आ जाती है। इसलिये राजा से लेकर छोटे से छोटे भृत्य पर्य्यन्त राजपुरुषों को अपराध में प्रजापुरुषों से अधिक दण्ड होना चाहिये।।३।।

वैसे ही जो कुछ विवेकी होकर चोरी करे उस शूद्र को चोरी से आठ गुणा, वैश्य को सोलह गुणा, क्षत्रिय को बत्तीस गुणा।।४।।

ब्राह्मण को चौसठ गुणा वा सौ गुणा अथवा एक सौ अट्ठाईस गुणा दण्ड होना चाहिये अर्थात् जितना जितना ज्ञान और जितनी प्रतिष्ठा अधिक हो उस को अपराध में उतना हीे अधिक दण्ड होना चाहिए।।५।।

राज्य का अधिकारी धर्म्म और ऐश्वर्य की इच्छा करने वाला राजा बलात्कार काम करने वाले डाकुओं को दण्ड देने में एक क्षण भी देर न करे।।६।।

(षष्ठम समुल्लास)

अब सोचिये ऐसी महान विचारधारा और दण्डव्यवस्था केवल वैदिक धर्म में ही मिल सकती है और महर्षि दयानंद जैसे आप्त पुरुष ही इसका उद्घोष कर सकते हैं तथा वैदिक जनता ही मान्य करेगी। क्योंकि लेखक को तो इसमें भी दोष नजर आ रहा है।

आप खुद सोचिये यदि कोई जज गलत निर्णय से किसी सामान्य निरपराध पुरुष को सजा देवे तो क्या ऐसे निर्णयकारी जज को सामान्य से अधिक दंड नहीं मिलना चाहिए ? बिलकुल तर्कपूर्ण और सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने वाली दण्डव्यवस्था है लेकिन क्या क़ुरान ऐसी व्यवस्था देती है ? क्या लेखक बताएँगे ऐसी समृद्ध और तर्कपूर्ण दण्डव्यवस्था का विवरण क़ुरान या अन्य किसी धर्म ग्रन्थ के आधार पर ?

10. ईश्वर के न्याय में क्षणमात्र भी विलम्ब नहीं होता । (14-105)

समीक्षा : लेखक ने ऋषि के क़ुरान पर उठाये आक्षेपों की समीक्षा में ईश्वर की न्यायवेवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए, क्या ऐसे लेखन और सोच को बुद्धिमानी के स्तर पर कुछ अंक दिए जा सकते हैं ? नित दैनिक रूप से हम देखते हैं की हमें क्षण प्रतिक्षण सुख दुःख आदि का अनुभव होता है, प्रत्येक क्षण में हम सुखी व दुखी अनुभव करते हैं क्या ये सुख दुःख हमें कर्मो के आधार पर प्रत्येक क्षण में प्राप्त नहीं हो रहा ?

क्या ये दुःख सुख जो हम जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभव करते हैं ये ईश्वर की न्यायवेवस्था नहीं है ? क्या लेखक को ये सुख दुःख अनुभव नहीं होते ? इस आक्षेप पर इससे अधिक और क्या लिख सकते हैं जबकि लेखक केवल पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ईश्वर की न्यायकारी व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहा हो ? शायद क़ुरान की "अंतिम दिन" वाली न्यायकारी व्यवस्था से लेखक पूर्ण सहमत है, मगर हम लेखक से ही पूछना चाहेंगे यदि अंतिम दिन ही सबका न्याय होगा तो फिर जो प्रत्येक जीव जीवन के हर क्षण में सुख दुःख अनुभव कर रहा वो किस प्रभाव के कारण ? क्योंकि लेखक शायद पूर्वजन्मों का फल तो मानता नहीं तो जब पुर्जन्मों का फल नहीं तो आपके किये इसी जन्म के कर्म फल अनुसार आपको हर क्षण सुख दुःख अनुभव हो रहे हैं तब "अंतिम दिन" न्याय होगा ये वयवस्था तो ठप हो गयी।

तो अब लेखक बताये यदि वो पूर्वजन्म भी नहीं मानते और केवल अंतिम दिन ही न्याय होने पर विश्वास करते हैं तो जो हर क्षण में सुख दुःख अनुभव हो रहा वो किस कारण ?

लेख बहुत बड़ा हो गया और अभी और भी लिखते गए तो बहुत बढ़ जाएगा इससे पाठकगण इतने से ही समझ जायेंगे बाकी आगे के लेख में लेखक के उठाये १०-१५ पॉइंट के जवाब दिए जायेंगे।

लौटो वेदो की और।

नमस्ते।
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